मेरे आंखों के ख्वाब

मेरे आंखों के ख्वाब,
सदा रहते हैं आंखों के पीछे,
जैसे शरीर रहता है,
कपड़ों के पीछे।
                  इन ख्वाबों को कौन जाने,
                   समझते वो नहीं जो पहचाने,
                    कभी कोई समझेगा?
                     कौन जाने!
आंखों के ख्वाब है पीछे,
हिम्मत नहीं शायद ,
किसी में, जो पर्दा है,
उस नीचे खींचे।
MERE ANKHON KE KHWAB,
SADA RAHTE HAIN AKNHON KE PICHE,
JAISE SHARIR RAHTA HAI,
KAPDON KE PICHE.
     
INN KHWABON KO KAUN JANE,
SAMJHTE WO NAHIN JO PAHCHANE,
KABHI KOI SAMJHEGA?
KAUN JANE!

ANKHON KE KHWAB HAIN PICHE,
HIMMAT NAHI SHAYAD,
KISI MEIN JO PARDA HAI,
USSE NICHE KHINCHE.

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