मैं

मैं खुद को मैं में हूं ढूंढती,
 मैं वही मैं हूं जो कभी थी।
हालातों ने टहलाया,
इनसे कोई बच न पाया।

बदल गए आचार विचार,
साथ में मैं का व्यवहार।

वक्त ने यह सिखलाया,
कौन अपना कौन पराया!

साथ चलते लोग मैं के,
मैं से रहते हैं रूठे।

अनकही मैं की कहानी,
ना सुनाएं कोई नानी।

उदासी मैं का चित्त,
खुद से है अपरिचित।

मैं खुद से है लापरवाह,
दूजों की कैसे करें परवाह।

मैं कहां शुरू कहां खत्म,
मैं का अजनबी सा जन्म।

दुनिया की है माया,
मैं को मैं न समझ आया।

दुनिया के इस जाल में,
मैं फंस गई बेकार में।

दुनिया की इस दौड़ में, मैं अब मैं ना रही,
जो कभी थी, बन गई कुछ और ही।



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