तन्हा
जब भी वो तन्हा हुआ,
उसको उसी ने खुद संभाला,
जब भी उसकी हथेली तन्हा होती,
अपना हांथ पाया खुद बढ़ा हुआ।
ज़िन्दगी वो अकेले है गुजारता,
किसी पर उसे वफा नहीं ,
एक बार जो धोखा मिला,
नफ़रत का शोला दिल में है सुलगता।
उसकी शाम तन्हा ही है रंगीन,
साथ किसी का है नहीं,
दो क़दमों का साथ क्या करें!
कम वक़्त के लिए नहीं चाहिए नाज़नीन।
सहारे का वो मोहताज नहीं,
खुदा ने अकेले भेजा,
क्यों करे वो उम्मीद,
तन्हाई में रहना है सही।
कल की बातों से वो सीखा,
कौन अपना कौन पराया,
माया की ये दुनिया है,
फरेब देख दोबारा वो न चीखा।
दिल के चारो तरफ बनाई दीवार,
तन्हाई ने दी मजबूती इसे,
लाख कोशिश करे कोई,
होगा न वो इसके पार।
चन्द लम्हों की जिंदगानी,
जीता है वो अपने लिए,
तन्हाई की चादर ओढ़े खुश वो,
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