चलती रही शाम



आजकल चल रही शाम है,
हांथों में बस जाम ही जाम है।
नशीला यहां कुछ भी नहीं,
क्योंकि मौत को दिया हमने पैग़ाम है।
लेकर हमें यहां से जाओ,
फिर लौट कर न तुम आओ।
इस दुनियां में कुछ बचा नहीं,
फिर पार कौन करे नाव।
चार लम्हों की ज़िन्दगी,
बड़ी है ये बंदगी।
रिश्ते निभाते चलते हैं,
क्योंकि रिश्तों की बस है ज़िन्दगी।
कल के देखे सपने,
अब कब होंगे अपने,
उम्मीद का दामन छूट गया,
क्योंकि सपने कभी नहीं होते अपने।

                       
                     

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