जानवरों की दुनियां
जानवरों की दुनियां
इस जानवरों की दुनियां में,
अब ना इंसान रहा,
जो बसते हैं इंसान की शक्लों में,
वो तो हैवान रहा।
अपना स्वार्थ साधता,
पशु की तरह रहा,
इंसानियत से अब,
इंसान का न नाता रहा।
मिट्टी के मोल जो बिका,
वो इन्सान था,
कौड़ी भी कीमत न रही,
वो तो ईमान था।
दौलत जो हांथ का मैल थी,
अब सिर पर आ बैठी,
नैतिकता की क्या बात कहें,
ये तो लगता कोई पुरानी चीज थी।
शर्म आंखों की जो,
अब न वो लिहाज़ रहा,
आंखों का पानी बस,
अब दिखावे व स्वार्थ के लिए बहा।
इस जानवरों की दुनियां में,
अब ना इंसान रहा,
जो बसते हैं इंसान की शक्लों में,
वो तो हैवान रहा।
अपना स्वार्थ साधता,
पशु की तरह रहा,
इंसानियत से अब,
इंसान का न नाता रहा।
मिट्टी के मोल जो बिका,
वो इन्सान था,
कौड़ी भी कीमत न रही,
वो तो ईमान था।
दौलत जो हांथ का मैल थी,
अब सिर पर आ बैठी,
नैतिकता की क्या बात कहें,
ये तो लगता कोई पुरानी चीज थी।
शर्म आंखों की जो,
अब न वो लिहाज़ रहा,
आंखों का पानी बस,
अब दिखावे व स्वार्थ के लिए बहा।
Isi liye to aaj ye kehar barsa hai.
जवाब देंहटाएंHan lekin meri ye lines kaafi pahle likhi gayin hain
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